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निजी अंगों में चोट नहीं, कतई मतलब नहीं की यौन उत्पीड़न नहीं हुआ

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नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के मामले में एक व्यक्ति की 12 साल की कैद की सजा को जारी रख महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यदि यौन शोषण की पीड़िता के शरीर पर चोट के निशान नहीं हैं, तब इसका मतलब यह नहीं है कि उसके साथ अपराध नहीं हुआ है। इस दोषी पर साढ़े चार साल की बच्ची के साथ यौन शोषण का आरोप साबित हुआ है।
जस्टिस अमित बंसल की बेंच ने बच्ची के अपहरण और यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए दोषी व्यक्ति रंजीत कुमार यादव की सजा को बरकरार रखकर कहा कि सत्र अदालत के फैसले में कोई खामी नहीं है। दोषी का तर्क था कि पीड़िता के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं थी। जस्टिस बंसल ने कहा, इसकारण , केवल चोटों की अनुपस्थिति यह मानने का आधार नहीं हो सकती कि यौन हमला नहीं हुआ।
हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत ने सही ढंग से देखा है कि यौन अपराधों के मामलों में निजी अंगों पर चोट विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। बेंच ने कहा कि यह जरूरी नहीं है, कि हर मामले में पीड़िता को कोई चोट लगी हो। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सही ढंग से देखा है कि घटना के समय बच्ची बहुत छोटी थी और मामूली विरोधाभास उसकी गवाही पर अविश्वास करने का आधार नहीं हो सकते।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह घटना जून 2017 में हुई थी, जब बच्ची अपने घर के बाहर खेलने के दौरान लापता हो गई थी। नाबालिग की तलाश करते हुए उसके पिता एक पड़ोसी के घर गए और बच्ची को वहां पर पाया। अभियोजन पक्ष ने कहा कि घर लौटने पर बच्ची ने खुलासा किया कि वह आदमी बच्ची को अपने घर ले गया था। इसके बाद मैंगो फ्रूटी देने के बहाने मेरा अंडरवियर उतारने के बाद उसके प्राइवेट पार्ट में अपनी उंगली डाल दी।